हमें अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए : परम् पूज्य गिरीश मुनिजी म.सा.
खिरकिया: 8.1.2023
जब सारे शहर स्मार्ट सिटी में बदल रहे हैं तब हमें भी स्वयं को स्मार्ट बनाना है। और इसके लिए हमें अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना होगा, वरना जीवन जीना व्यर्थ है हमें अच्छा मार्ग चाहिए या अच्छी मंजिल, जो धर्म के मार्ग पर चलते हैं, उनकी मंजिल अच्छी ही होती है। और जो संसार के मार्ग पर चलते हैं, उनका मार्ग भले ही अच्छा हो, लेकिन मंजिल कंटीली ही होती है। यह बात श्वेतांबर जैन संत गिरीश मुनिजी म.सा. ने रविवार को समाज के मांगलिक भवन में आयोजित संस्कार शिविर में कही उन्होंने बताया कि उनकी दीक्षा को 11 वर्ष हो चुके हैं। और इन 11 वर्षों में उन्होंने संसार को जितनी अच्छी तरह जाना है, उतना संसार अवस्था में भी नहीं जाना था। गोचरी पर जाते समय या लोग जब दर्शन करने आते हैं, तब उनके अलग अलग व्यक्तित्व को जानकर लगा कि युवाओं को इस समय संस्कारों की बहुत आवश्यकता उन्होंने कहा कि आज के दौर में शिक्षा का बहुत जोर है। फिर भी शिक्षा की न्यू होप लीवर कमजोर है दवाई तो खूब ले रहे हैं पर स्वस्थ नहीं हो रहे हैं तो समझना बीमारी पुरजोर है और बीमारी कुछ और है। उन्होंने कहा कि संत को समाज का ड्राइवर कहा गया है, हम बस में सफर करते हैं, तो ड्राइवर के जितने पास बैठते हैं उतने हमें दचके कम लगते हैं। इसी तरह गुरु चरणों में उनके जितने समीप रहेंगे उतने ही हमें भी संसार रूपी दचके कम लगेंगे। भंवरा तालाब में दूर रहे तब भी फूल का नाम ले लेता है। वही मेंढक तालाब में रहकर भी लाभ ले नहीं सकता ऐसी ही आज हमारी स्थिति है।
माता पिता का सदैव सम्मान
इस भव में हमारे सबसे ज्यादा उपकारी माता-पिता है। हमें माता-पिता का विनय करना चाहिए। विनय अर्थात झुकना, विशेष प्रकार से झुकना झुकना भी हमें मन वचन और काया से हैं, क्योंकि जो झुकता है उसी में जान है, वरना अकड़ तो मुर्दे की पहचान है। पहले माता-पिता के चरण छू कर लोग घर से बाहर निकलते थे और आज लोग मोबाइल की बैटरी फुल कर घर से निकलते हैं। उन्होंने कहा कि जीवन में तीन का उपकार कभी नहीं भुलना, माता-पिता का, कठिन समय में सहायता करने वाले का और गुरु भगवन का मुनिश्री ने कहा कि जीवन में अनुशासित होना चाहिए। उसके बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं है। बड़ी-बड़ी डिग्रियां भी कुछ काम की नहीं। युवा पढ़ने के लिए बाहर जाता है, तो माता-पिता स्वयं उसे मोबाइल देते हैं, यह सोच कर कि बच्चे के हालचाल मिलते रहेंगे पर बच्चा उस मोबाइल का दुरुपयोग करता है। यदि बच्चे के जीवन में संस्कार रूपी घुटी होगी तो वह मोबाइल का सदुपयोग ही करेगा।
मोबाइल नेटवर्क से समझाया जीवन जीने का सलीका
उन्होंने अविवाहित युवाओं को संदेश दिया कि कभी भी जीवन में लव मैरिज मत करना। एक व्यक्ति ने पूछा कि महाराज इसका क्या कारण लव मैरिज अरेंज मैरिज में क्या फर्क है। तो पूज्यश्री ने फरमाया कि लव मैरिज और अरेंज मैरिज में वही फर्क है जो नेचुरल डेथ और सुसाइड में है। यह अनुभव की बात है, लेकिन जब तक अनुभव रूपी कंघी हमारे हाथ में आती है, तब तक हम गंजे हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि समाज ने जो नियम बनाए हैं, बहुत सोच समझकर बनाए है। रीति रिवाज की यह विवाह परंपरा वास्तव में सोचा समझा विधि विधान है। हमारी कॉलेज लाइफ रिलायंस जैसी होती है, जिसमें कहते हैं कर लो सारी दुनिया मुट्ठी में ।लेकिन उसके बाद हमारी बैचलर लाइफ एयरटेल के समान होती है, जिसमें हम आजादी से जीना और घूमना चाहते हैं सगाई के बाद का जीवन आईडिया जैसा होता है, जो बदल दे आपकी दुनिया शादी के बाद का जीवन वोडाफोन जैसा होता है, जहां भी जाए साथ में जाएं। कुछ साल बाद जीवन बीएसएनएल जैसा हो जाता है, जब भी फोन लगाओ हमेशा यही कहता है लाइन अभी व्यस्त है । लेकिन हम साधु साथियों का जीवन तो एलआईसी की तरह होता है, जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी उन्होंने कहा कि हमारे किए गए क्रियाकलाप लौटकर हमारे पास आते ही हैं। अतः जो व्यवहार हम अपने लिए पसंद करते हैं वह दूसरों के साथ करें माता पिता की भक्ति हमें भाग्यवान बनाती है लेकिन गुरु की भक्ति हमें भगवान बनाती है। मुनिश्री ने सभा में 7 कुव्यसनों के त्याग की प्रेरणा दी, जिसे कई लोगों ने धारण किया। मुनिश्री का प्रभावशाली व्यक्तित्व लोगों के मनों मस्तिष्क को छू गया और श्रध्दालू प्रत्याख्यान के लिए तत्पर हो गए । इस दौरान अभय मुनिजी म.सा. ने प्रेरणा देते हुए कहा कि इस तरह के संस्कार शिविरों का समय-समय पर आयोजन होते रहना चाहिए। हेमंत मुनिजी म.सा. ने त्याग प्रत्याख्यान करवा कर सामूहिक पचकान करवाए और मांगलिक श्रवण कराया।
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